zishan alam
RelationshipsJul 11, 2021
वक़्त निकलता जा रहा है /waqt nikalta ja rha hai
ये उलझने सुलझती क्यों नही ये ख़ामोशी टूटती क्यों नही धूप सिरहाने को है सूरज ढलने को है वक़्त निकलता जा रहा है मेरे हाथों से सरकता जा रहा है सांसे अटक रही है धड़कने बढ़ रही है देखना मेरा ये वजूद एक दिन तुम्हारे सामने खत्म हो जाएगा |
Why doesn't this problem get resolved?Why doesn't this silence break?the sun is about to risethe sun is about to settime is running outsliding through my handsis holding your breaththrobbing is increasingsee my existence one daywill end in front of you.
write by zishan alam
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